Tuesday 12 August 2014

Lal Baugh, Nathdwara

प्रभु श्रीनाथजी के ब्रज स्वरूप सुरम्य नगरी में सुन्दरी के कलात्मक व भावनात्मक के प्रतीक कई उद्यान है इन सारे उद्यानों को श्रीनाथजी के विहार स्थल के रूप में बनवाये गये थे । जहां श्रीनाथजी की लीलाओं के परिद्रशय आज भी दृष्टिगोचर होते है ।

यहां के सारे उद्यान वल्लभ परिवार की निजी सम्पति थे किन्तु नि.ली. ति. गो. श्रीगोविनन्दलालजी महाराज श्री ने अधिकतर उद्यान जन हित में सरकार व समाज को सौंप दिये | तीर्थ स्थान होने से पर्यटक , धार्मिक तीर्थयात्री इन उद्यानों को देखकर आनन्दित हो जाते है |

यहाँ के उद्यानों में " लालबाग" प्रमुख है । इन उद्यानों में मूर्तिकल, चित्रकला व उद्यानकला दर्शनीय है । इसी में एक महाराजश्री का महल है पीछे खेल का बड़ा मैदान है वर्तमान में खेल मैदान भारत सरकार व राज्य सरकार के खेल विभाग के सहयोग से विस्तृत्त रूप में विकसित किया गया है । यहाँ राष्ट्रीय व राजय स्तर की प्रतियोगिताएँ तथा सौम्यज्ञादिकार्य किये जाते है । 
 
यहाँ के महल में " श्रीनाथजी म्यूजियम" है जिसमें श्रीनाथजी मन्दिर से जुड़े पुराने रथ, पुराने सामान आदि संगृहीत कर यात्रियों के दर्शनार्थ हेतु रखे हुए है |

बगीचे के मध्य में " श्रावण भादवा" नाम का बगीचा है जहां कलात्मक ढंग के फव्वारे एवं लता पतादि का मनोरथ रूप दिखाई देता है | बाग़ के मध्य में जल का फव्वारा है इसके पास एक तिबारी है | आगे लीला विहार श्रीकृष्ण की मूर्तियां बनाकर वाटिका के सामान को सुसज्जित बनाया गया है इसी के पास कैलास पर्वत के शिवजी का प्राकृतिक रूप में गंगावरुण का दृश्य बनाया गया है | बाग में श्रीठाकुरजी पधराकर कई मनोरथ आयोजित किये जाते है | यहां सार्वजनिक मेले भी लगते है | यहां तुलसी , जामून , चंदन , केले आदि के वृक्ष व पौधे है यह सब श्रीनाथजी के मन्दिर में पधराये जाते है |

 ||जय श्री कृष्ण||

Sacred Relation between Shri Krishna & Draupadi

When Krishna faced injury in battle, Draupadi tied a strip of cloth around Krishna's wrist to stop bleeding from his wound.

This incident touched Krishna so much that he declared her as his sisters and vowed to protect her from all possible danger in future.

Jai Shri Krushna!


Thursday 7 August 2014

Shrinathji Gaushala - Nathuwas, Nathdwara

हमारे यहाँ गाय को गौमाता कहा जाता है। अत: सब की परम वंदनीय मानी जाति हैं । श्रीमदभागवत में भगवान वेद व्यास ने धरती माता को गाय की सर्वोच्च महत्ता स्थापित क़ी हैं । भगवान श्रीकृष्ण के जन्म पर गौ-श्रृंगार, गौ-पूजन और गौदान का वर्णन वर्णित है। श्रीकृष्ण का क्रीड़ारम्भ बछड़े की पूंछ पकड़ने के साथ ही हुआ था ।

वल्ल्भ संप्रदाय की प्रधान पीठ नाथद्वारा तो गायों का घऱ हें । कयोंकि इस संप्रदाय में गाय और गोपाल दोनों क़ो ही प्रधानता दीं जाती है । अत: ब्रजराज श्रीनाथजी के नाथद्वारा आगमन के साथ ही नगर में गौशालाए बनने लगी थी । 

श्रीकृष्ण स्वरूप श्रीनाथजी बावा क़ो गायें बहुत प्रिय है । नाथद्वारा में नाथूवास श्रीनाथजी की प्रधान गौशाला है । यह गौशाला बहुत विस्तृत रूप में है । यहाँ हजारों गाये, बछड़े,भैस है । यहाँ विशेष रूप से दुधारू गाये रखीं जाती है । जिससे मन्दिर में ठाकुरजी के लिए दूध पधराने में विलम्ब न हो। यहाँ एक कक्ष में नन्दवंश की गाय हे, जो अनन्कूट के अवसर पर अन्य गायोँ की साथ श्रीनाथजी के मन्दिर जाती है और गोवर्धन पूजा के चौक में महाराजश्रीं द्वारा पूजीं जाती है । यात्री और भकतगण गोशाला में इसका दर्शन करते है, पूजा करते है और इसके नीचे से निकलने की परंपरा है । गौशाला के विशाल परिसर में मध्य का एक स्थान उंचाई पर बना हुआ है, यात्रीगण यहाँ से गायों के दर्शन करते है । 

गायों को थूली, दलिया, गुङ खिलाने को चिर बना हुआ हैं। गाये अपने कक्षों से दौड़ती हुई चिर क़े पास पहुंचतीं हैं उस समय उनके गले में बंधी हुई तांबे पीतल आदि कि घण्टियाँ और टोकरो में बजती हुईं सुमधुर स्वर लहरियाँ सारे वातावरण को संगीतमय बना देती है। गोपाष्टमी के दिन यहाँ विशाल मेला लगता है । महाराजश्री पधारते है। नागरिको, यात्रिओ ओर दर्शको से गौशाला की सभी छते भऱ जाती है ।
नाथूवास के अतिरिक श्रीनाथजी की ग्यारा ओर गौशालाऍ है । ऊपरी ओड़न में श्रीनाथजी की दो गौशालाऍ है। ये विशाल और पककी बनी हुई है तथा गायों के लिए चारा - दाना - पानी की पूरी व्यवस्था है । यहाँ पर गौसंवर्धन के साथ गायों के स्वास्थ का भी पर्याप्त ध्यान रखा जाता है । गायों की समय समय पर देखभाल के लिए एक डॉक्टर की भी नियुक्ति है, जो देशी व् विदेशी पद्धतियों से गायोँ की चिकित्सा करते है ।

श्रीनाथजी की इन गौशालाओं के क़ोई पशु बहार बेचे नही जाते है । गायोंका सारा दूध घाघर में ढ़क क़र श्रीनाथजी की सेवामें पहुँचाया जाता है । यहाँ इस गोलोक स्वरूप गौशालाओं के सम्पूर्ण देख रेख, सार संभाल हेतुं मन्दिर मण्डल पुर्ण निष्ठा के साथ सेवा में रहता हैं । 

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