Tuesday, 6 August 2013

06 Aug 2013

The Story of Shri Damodar Das Harsaniji - 2

"अथ दामोदर दास हरसानी की वार्ता" - प्रसंग - 

पुनः श्री महाप्रभु ने श्री ठाकुरजी से यह याचना की कि दामोदर दास का देह उनके [श्री आचार्यजी के ] सामने नहीं छुटे | श्री आचार्यजी महाप्रभु के अन्तरंग सेवक दामोदर दास से वे कोई भी तथ्य गोपनीय नहीं रखते थे | श्री आचार्यजी महाप्रभु तो श्रीमद् भागवत का अहर्निश अनुसन्धान करते रहते थे तथा कथा के माध्यम से दामोदर दास के ह्रदय में " पुष्टिमार्ग सिध्धान्त एवं भगवद्लीला रहस्य" स्थापित करते रहते थे |



एक समय दामोदर दास और श्री गुंसाईजी (श्री विट्ठलनाथजी) एकान्त में विराजमान थे, श्री गुंसाईजी ने दामोदर दास से पूछा - "तुम श्री आचार्यजी महाप्रभु को क्या करके जानते हो?" तो दामोदर दास ने कहा "हम तो श्री आचार्यजी महाप्रभु को जगदीश श्री ठाकुरजी से भी अधिक करके जानते हे |" श्री गुंसाईजी ने दामोदर दास से कहा - "तुम एसा क्यों कहते हो कि श्री आचार्यजी, श्री ठाकुरजी से भी बड़े हे?" तब दामोदर दास ने उत्तर दिया - "महाराज दान बड़ा होता हे या दाता?" किसी के पास कितना ही धन क्यों न हो, यदि वह धन में से दान करेगा, तभी वह धन में से दान करेगा, तभी तो वह दाता बनेगा, श्री आचार्यजी महाप्रभु का सर्वस्व धन तो श्री ठाकुरजी ही हे, उन्होंने (श्री आचार्यजी ने) हमें अपने जीवन-सर्वस्व का दान किया हे अतः हम उन्हें (श्री आचार्यजी को) सबसे बड़ाकरके जानते हे |

एक अन्य समय की बात हे जब श्री आचार्यजी महाप्रभु तथा श्री गुंसाईजी आपनी बैठक में विराजमान थे | उनके पास दो-चार वैष्णव हँसने खेलने के लिए बैठे थे | आप (श्री आचार्यजी ने) उनसे हँस-खेलकर हँसी (मसखरी) कर रहे थे और बड़ी प्रसन्नता से खेल-खेल में वार्ता भी कर रहे थे | उसी समय दामोदर दास भी आ गए | दामोदर दास ने कहा - "महाराज, अपना मार्ग निश्चिन्तता का नहीं है | यह मार्ग तो कष्टपूर्ण आतुरता का है | इस पर श्री गुंसाईजी ने कहा - "तुम बहुत अच्छी बाते करते हो लेकिन हमारे ऊपर श्री आचार्यजी महाप्रभु की कृपा होगी तभी हमें कष्टपूर्ण आतुरता होगी | यह मार्ग तो श्री आचार्यजी महाप्रभु की कृपा से ही प्राप्त है |" दामोदर दास साष्टांग दण्डवत करके बोले - "हमें तो एक बार राज (आप) से विनती करनी थी की यह मार्ग इस प्रकार व्यव्हार करने योग्य है | इसके पश्चात तो आप स्वयं प्रभु है आपको जैसा रुचेगा वैसे करेंगे | यह सुनकर श्री गुंसाईजी बहुत प्रसन्न हुए और बोले की हमें श्री आचार्यजी महाप्रभु का निर्देश है कि दामोदर दास जो कहे उसे मन लगाकर स्वीकार करो |" हम इसीलिए तुम्हारी ओर देखकर अति प्रसन्नता का अनुभव करते है | इस प्रकार आप (श्री गुंसाईजी) ने दामोदर दास को श्री आचार्यजी महाप्रभु का अन्तरंग सेवक समझा और उनकी शिक्षा को स्वीकार करते रहे | सच है - बड़े तो बड़े ही होते है |

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